कृष्णा पूछ्यो कृष्ण सूं

थें म्हारा कुण हो गोविंद?

आपांरै विच रगतसंबंध

सामाजिक नातो

फैर क्यूं अर किण विध

हर दाण ऊबा व्हो

म्हारी पीड़ बांटवा

कांई यो है नेह प्रीत रो नातो

कांई नाम दूं इणनै,

बोलो केशव?

माधव मुळक्या

बोल्या धीर-गंभीर सुर में

फगत नेह प्रीत नी

या मित्रता है सखी।

नेह प्रीत नी,

मित्रता!

उळझ गी यज्ञसुता

अचुंभा सूं बोली

प्रेम अर मित्रता में

आंतरो कांई है सखा?

प्रेम सूं ही तो

जनम लेवै है मित्रता

मित्रता में भी तो

होवै है प्रेम।

माधव फैर मुळक्या

लागा कैहवा

सखी!

प्रेम तो है हर नाता री नींव

प्रेम रा बीज सूं ही

उपजे है हर नातो

प्रेम है वो मुहंगो सोनो

जिणसूं गढ्या जावै है

भांत भांत रै नाता रा आभूषण

पण जद कदै

टूट जावै है स्वर्णाभूषण

नी होवै है घणो घाटो

विण स्वर्ण सूं

फैर गढ्यो जा सकै

एक नूवौ आभूषण।

पण सखी

मित्रता है हीरो अणमोल

जो गढ्यो जावै है एक दाण

जो टूट जावै तो नी लेवै

पाछौ वो ही आकार।

स्रोत
  • सिरजक : अनुश्री राठौड़ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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