परिवार मएँ

बोलाती भासा,

एटले मायड़ भासा...

माँ ना धावण हाते

घूँटले-घूँटले गटकावी,

मायड़ भासा

बोलवू हिकते

पैली हाँबरी

मायड़ भासा

एटले माँ

अर मायड़ भासा

नी ओळख

कारेय

आलवी

पड़ती नती

बे ने

कोय विशेषण

आलवा नी

जरूरत नती पड़ती!

माँ,

आपडा

संस्कार थकी

ने

मायड़ भासा,

बोलचाल ना

वेवार थकी

ओळखाय

मानवी ने...

आखो जमारो

बुद्धि ने ताकत

आलवा में

बे

कारेय पासी न्हें पड़ें

आपडी फरज

तो मातर

मावजत करवानी

माँ नी

ने

मायड़ भासा नी।

स्रोत
  • सिरजक : आभा मेहता 'उर्मिल' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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