बटाऊ केरो खड़को

चाल्यो बरखा रो चरखो

गोबर अर फूस सूं

ढकी गळयां में भर बह्यो

गंदलो जळ

नगरी रै धंसतै परकोटै पर

फट पड़ी है पीपळ री कूंपळ

थार री माटी रा कण

नाचै है धोरां री चोटी पर

आभो घुमड़ै रे

नथुनां में सौरम माटी री भर

आज तो सड़पांला

तीखी बूंदां रा झोळां में

नयोड़ी छतरी नैं परखो

चाल्यो बरखा रो चरखो।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : आशीष बिहानी ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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