बकरियां खुद जावै ही

कसाई रै घर।

छुरौ नीं हौ कसाई रै हाथ।

बाड़ खावै ही खेत।

रूंखां री दुसमण ही उणरी इज डाळ।

च्यारूं कांनी रेसमी-झीणा जाळ।

नाचता चिड़ीमार।

डरप्योड़ी कंपती

उड़ती-फिरती चिड़कलियां।

नीचै धरती ऊपर आभौ।

म्हैं थनै कहाणी सुणावूं

म्हारी लाडेसर!

पण थूं बिचाळै पूछ बैठी-

कांई व्हियौ व्हैला पछै चिड़कलियां रौ?

म्हारी लाडेसर!

थारौ सवाल वौ इज देस अर

वै इज जाळ, बाड़, खेत, बकरियां,

चिड़ीमार बिनां छुरां रौ कसाई,

आज उणीगत वैड़ा इज दीखै।

थूं इज बताइजे मोटियार व्हियां

म्हारी लाडेसर।

कांई व्हियौ व्हैला पछै चिड़कलियां रौ?

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : आईदान सिंह भाटी ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम
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