जळ रै जळ नरमळ कर मन

अपणां सूं छळ कतना दन

नैण-नीर पी’र जी रही है बावड़ी!

नखरा कर-कर निकळ गई बैरण बळ खा’र बादळ्यां

मदगाळी मानती नहीं मन की मनवार बादळ्यां

जतनी-जतनी अरज करी चढगी गिगनार बादळ्यां

मरूथळ का भाग मैं कोई लिख दे दो च्यार बादळ्यां

जळ रै जळ धरती कतनां दन

पातदार होठ सीं रही फसल खड़ी!

देवदूत काळ को सगो खेतां की खणक लूटग्यो

बदरंगी भोर हो गई संझ्यां को धनक टूटग्यो

काळ-काळ-काळ कूकता कोयल को कंठ छूटग्यो

एक गंध घुटण सूं मरी पुरवा को सांस टूटग्यो

जळ रै जळ मोळाया बन

खेतां सूं छळ कतना दन

सपना संवळाता जावै घड़ी-घड़ी!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली राजस्थानी भाषा साहित्य री तिमाही ,
  • सिरजक : प्रेमजी ‘प्रेम’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राष्टभाषा हिन्दी प्रचार समिति
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