(दुवा)

रण धूंसा रजथान रा, बै जूंना इकबार

इण जुग आडा पसरग्या, लोभ किया लाचार

रगत राळ नै राखता, कलम कह्यो री कांण

डूंम दलाली में दबी, इकबारां री आंण

जन-मन ज्यांनै जांणतौ, जुग-जीवण पतवार

पूंछ बंध्या गोडा घिसै, विग्यापन री लार

इकबारां रै आंगणै, नकटा बाजै नेक

अकल अडांणी रावळै, टुकड़ां टुळगी टेक

रूळै राज में रोवता, दर-दर देखै दांन

डर दळ-दळ में डूबगी, संपादक री स्यांन

खोटी खबरां नित घड़े, निसंग करै बोपार

आप कहौ ज्यूं छापदै, देखै दस कलदार

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : गणेशीलाल व्यास उस्ताद ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : पहला संस्करण