सहेल्यां घूमर रमवा जाय।

घूमर घालै जद गौरड़ियां

समदर झोला खाय

चकरी चढती धरणी दीसै

पवन पंथ पलटाय।

सहेल्यां घूमर रमवा जाय।

डीगा डूंगर डिगमिग डोलै

सूरज निम निम आय

रूंख रमण नै पड़े ताखड़ा

नदियां बळ खा जाय।

सहेल्यां घूमर रमवा जाय।

चोटी जांणै बासंग छिड़ियौ

लहरियौ लहराय

बाजूबंद में बंधियौ जोबन

लूंबां लग झुर आय।

सहेल्यां घूमर रमवा जाय।

रंग कसूंबल चुवै हथाळी

लागै पोयण पांव

चंपे केरी डाळ विलूंबै

कदळी बन रै मांय।

सहेल्यां घूमर रमवा जाय।

कुण जांणै कद कंथ-मोरियौ

बाड़ी घर ले जाय

इण बाबल रै आंगणिये में

दो दिन तो लहराय।

सहेल्यां घूमर रमवा जाय।

स्रोत
  • पोथी : परम्परा का हेमाणी अंक ,
  • सिरजक : नारायण सिंघ भाटी ,
  • संपादक : तेजसिंह जोधा
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