रेत हुई रुतमाती, सांईना थारी

धरण बुलावै घरे आजा!

बाय चलै बरसाती, रंगराजा थारी

कामण घबरावै घरे आजा!

नवी जोड़ थारी नै म्हारी, नवी जोड़ नारां री

आभै नवा बधाऊ दोड़ै, चढी उमंग सारां री

रुत हाळी थारा, बहल्या उकळावै घरे आजा!

इण जुग रा भागीरथ ल्यासी, सूखै थळ में पाणी

बाग-बगीचां सूं ढर जासी, खड़ै खेतड़ा ढाणी

मनमाळी थारी, क्यारयां कुमळावै, घरे आजा!

आठ मास परदेसां बीत्यां, अब बिरखा रुत आई

धण, धीणो, धरती सै तड़फै पुळ-पुळ तिरस बधाई

धनगोरी थारी, गायां रं भावै घरे आजा!

नगर, गांव, खेड़ां में लाग्या, जन-महनत रा मेळा

नर-नारी कमतर में कूदया, जन-कारज में भेळा

बळहाथी थारी, मरवण सरमावै, घरे आजा!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कवि ,
  • सिरजक : गणेशीलाल व्यास ‘उस्ताद’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर ,
  • संस्करण : तीसरा