(1)

लूंण
एक चिमटी लूंण
बणावै साग नै 
सुवादु।

ओसणीजतै आटै नै 
देवै गुमांन, 
उणनै खाया 
मिनख री 
काया माथै चढ़ जावै
मणां बंध भार।

अपांरी आखी जूंण 
लूंण री 
करजदार होवै, 
पण वे 
लगाय दियौ पैरो 
लूंण माथै, 
रिस्तां मांय आय गियौ फिकास,
बायरै रौ 
लूंणीयौ सुवाद
चांणचक बांध दियौ कोई।  

थूं लड़ियौ 
आखी उमर
मिटावण सारुं
मिनखां रै मनां रो खार,
थूं इज 
जांणतौ हौ 
लूंण अर खार रौ फरक।

मन रै कसाय नै 
जे करणौ है कम,
तौ जरूरी है 
जूंण में 
एक चिमटी लूंण, 
थूं लड़ी लड़ाई 
लूंण री 
उतारण इण माटी रो करज, 
जिणरौ 
थूं खायौ हौ लूंण।

अठै रा 
बासिंदा नुगरा होय सकै
पण
लूंण नुगरौ नीं होवै 
वो 
आज ई थनै चितारतौ 
होय जावै अनमणो।  

लूंण रौ मन
थूं इज जांणियौ 
लूण रौ मन
थूं इज राखियौ।


(2)

सूत 

खेत सूं 
मिनख री देह तांई 
पूगण रौ मारग 
कपास नीं जाणै,
नीं जाणै चरखौ
नीं सूत 
पण 
हजारूं हाथां हालतौ 
औ मारग 
थारी आंख्यां देखियौ,
इण धरती री पीड़
थूं ओळखी।

अलेखूं जुगां पैली 
बडेरा घड़ीयौ हौ
पइड़ौ,
थूं 
उण पइड़ै नैं साधियौ, 
उण सूं घड़ीयौ 
सूत रौ मारग।

इण उघाड़ी माटी नै
थूं ओढाई चूंदड़ी।

करोड़ूं हाथां नै
काम मिळण रौ
थारौ सपनौ 
छोटी सी  तकली 
कातीजियौ।

एक छोटी सी तकली 
माप सकै 
बडा बडा मिनखां री देह,
औ लून्ठौ गुमेज 
उण नान्हीं तकली नै 
थूं सूंपियौ।

(3)

बकरियां 

बकरियां 
ऊभी है 
अनाथ, 
जोवती बाट 
डगमग डील री,
वे कंवळा  हाथ 
संभाळता वांनै 
राखता ध्यान चारै-पाणी रौ 
वां हाथां मांय 
जीवती ही 
बकरियां री उम्मीद।

चौफेर 
बधतै अंधारै 
खुलै में ऊभी 
वांरी काया 
कदैई नीं धूजी,
जांणती ही बकरियां
दो आंखियां 
हर टैम 
वां नै देखै है।

दो पग 
वांरै सांरू 
पगां वाल है।

पण आज 
आप आप रै
घरां मांय बन्द 
करोडूं बकरियां 
किणनै पाड़ै हेलौ
कसाईयां रा टोळा
हाथां में छुरियां लियां 
घूम रैया है।


(4)

आतमबळ 

नूंवी नीं ही 
उणरी बात, 
भूलियां बैठां हां
अपां इज 
बडेरा री आदू सीख।
उण
कर दी 
पाछी चेतन 
धूंणी
आतमबळ री।

स्रोत
  • पोथी : आप कठी कांनी हौ ,
  • सिरजक : अर्जुनदेव चारण ,
  • प्रकाशक : रस्मत जोधपुर ,
  • संस्करण : pratham