सूत की नांई

काचो होवै छै परेम!

तो कांई कै दो-च्यार

बगत जद बी मल्या

हांस'र बोल ल्या

मुखौटो लगा'र-

म्हनै झूठा लागै छै

अस्या लोग...

अर वांको अस्यो

झूठो दरसाव।

पण आज तो ताबड़तोड़

हिसाब सूं

अस्या मनख्यां की

खरपतवार बधती जा'री छै।

को मतबल तो कोई नै

कै सांचा लोग

नपज र्या..!

स्रोत
  • सिरजक : जितेन्द्र निर्मोही ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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