बिजळी जाता ही

खोड़ली हवा

धप्प बुझा देवै

चिमनी नै भी।

च्यारूं मेर

पसर जावै

घुप्प अंधेरो।

उण बगत

डरेड़ो टाबर

देखै निजर भर

मां री आंख्यां

अर

चानणो फैल जावै

सारै घर मांय।

स्रोत
  • सिरजक : अंजु कल्याणवत ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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