अरे बटोई सो मत जाजै, बटमारां को पहरो छै।

थारै माथै बोझ बंध्यो पाका-काटां को सहरो छै॥

फूंक-फूंक कर पग धरजे, सूळां को जाळ घणेरो छै।

बियाबान में लळचा मत, रेती को रंग सुनहरो छै॥

उथळो देख उतर मत जाजै नदी को जळ गहरो छै।

पार कराड़ै मांझी बैठ्यो पण काना को बहरो छै॥

कांसी की थाळी में घी अर शहद मल्यो मत पी जाजै।

विस्वासां की हत्या कोयां का छळबा में मत आजै॥

काळी आंधी का बीचां मं अंगद पग बण रप जाजै।

ईं जामण के कारज खातर मर-मर कर जी जाजै॥

ईं दर्पण मं अळक मळकतो जयचन्दां को चहरो छै।

अरे बटोई सो मत जाजै बटमारां को पहरो छै॥

ईं नगरी में झांक बावळा कतना घर बदनाम छप्या।

ईं बगला की माळा भीतर कतना अल्ला राम छप्या॥

आस-पास महखाना भीतर कतना खूनी जाम छप्या।

ईं अबला की छाती भीतर कतना ताता डाम छप्या॥

जिन्दो मांस कांवळा नौचे चारों-मेर अंधेरो छै।

अरे बटोई सो मत जाजै बटमारां को पहरो छै॥

थारी बाड़ी अरे कबीरा कस्या फूलणां सूं छाई।

ढाई आंखर प्रेम बेल नफरत की कळियां चटक्याई॥

बीचों-बीच बटोई फंसग्यो कूवो अठी-उठी खाई।

सपना ले, मनमोहन नंदरा पलकां बीच चली आई॥

होस्यारी सूं जाग बटोई थोड़ी दूर सवेरो छै।

अरे बटोई सो मत जाजै बटमारां को पहरो छै॥

स्रोत
  • पोथी : आंगणा की तुळसी ,
  • सिरजक : किशन लाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
जुड़्योड़ा विसै