रामजी की चिड़िया

रामजी कौ खेत

फेर म्हूं कुण?

म्हारौ कांई?

कांई म्हूं अर कांईं म्हारी ज्यात?

पेट भर्यां पाछै भी

चांच भर’र उड ज्या छै

चड़कल्यां

चड़कल्यांन का पळ र्या छै

पूरा का पूरा खांनदांन

अर म्हूं

बणर्यौ छूं गंगाराम

रामजी की चड़कल्यां

आवै छै, खावै छै

रामजी कौ खेत।

म्हूं बादळ्यां को मनवार करूं छूं

म्हूं खरार-खरूर करूं छूं

म्हूं पटकूं छूं खाद-बीज

पण रामजी का राज में

म्हारा गोफ्या कै आगै

ऊभी होज्या छै

बाप-दादां की बात

रामजी की चिड़िया

रामजी कौ खेत

खावौ री चड़कल्यां

भर-भर पेट।

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : प्रेमजी प्रेम ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : पहला संस्करण