धरती, धूसर माटी

रंग अलेखूं, परबत घाटी।

धवळ-वेस मरजादा आळी,

जिण भुगती ही रातां काळी।

उण माटी में,

उण आंगण में,

बुद्धां री करूणा लैराई,

महावीर अहिंसा अरथाई

मोरपांख गीताजी गाई।

उण माटी में,

उण धरती में,

व्याप गई ही अलख उदासी

बीखरगी ही पांख प्रेम री।

अंधकार हो सत्यानासी।

मरजादा पग व्हिया पांगळा।

मिनखपणै नै सुरसा गिटगी।

डाकीचाळो देस व्यापग्यो।

अंधकार अंतस ऊतरग्यो।

गांव गरीबी,

नागी नगरी,

आदम रो जायो बण चकरी

आंख्यां साम्हीं

ओढ गुलामी

अन्नदाता री जै जैकारां

करतां-करतां जुग पळटाया।

जीवण री आपाधापी में

कूड़ आखरां री कापी में

अेक सबद आंखियां खोली।

मिनख जूण रौ अरथ बताऔ।

हींये विचाळै में साच जगायौ।

वै आंख्यां अपणापै आळी

पत्तां-पत्तां, डाळी-डाळी

गांव-गौरवां/ओरण डांडी

रिनरोही, मगरा अर घाटी

नगर-नगर/अर स्हैर-सहैर में।

बांध लंगौटी/हाथां लाठी

आभै अर धरती नै नापी।

ओढ देह पै अेक कापड़ो।

बांध आपरी कमर काठी।

साबरमती में सुर लैराया।

सोरठ री आंख्यां अरथाया।

मधरी-मधरी बोली बोली।

डब-डब पाणी, करूण आंखियां

आजांदी रो अरथ बतायो।

दसां दिसावां गूंजण लागी—

कुण आयो?

कुण आयो?

मुळक-मुळक मनभाणी आंख्यां

अपणापै री ऊजळ पांख्यां

अंधकार नै उण जग वौकारियो।

उण गांधी सूं,

उण आंधी सूं,

सात समंदर रा सिंघासण

हळबळ-हळबळ करता आसण

धूजण लागा।

गोरां आळी उण सत्ता नै

संत नाप ली एक कदम सूं।

सत्य अहिंसा सूं ललकारिया।

उण वौकारियो अंधकार नै।

बम्ब री बळती लपटां में

गोळ्यां री जबरी झपटां में

दानवता री उण आंधी में,

वै दो आंख्यां

सूरज री साखां निपजादी

लड़खड़ती लुळती काया में,

भारत भू रै हर जाया में,

उण बोलां सूं,

उण वाणी सूं

गंगजमन री छौलां उछळी।

ब्रह्मपुत्र रौ वेग बदळग्यो।

चंबल रो पाणी बळखायो।

सिंधु री लैरां अरथायो—

कुण आयो?

कुण आयो?

आंधी अर बोळी जगती में

किणरो परचम लैरायो

पंचमद री धारा अरथायो

कुण आयो?

कुण आयो?

कृष्णकावेरी जस गायो—

कुण आयो?

कुण आयो?

छिप्रारेवा तट बरड़ायो—

कुण आयो?

कुण आयो?

सात समंदर धज सूं बोल्या-

म्हारो उद्धारक आयो।

काळी मानवता कुरळाई-

म्हारो रूखवाळो आयो।

भूखी आंतड़ियां अरथायो-

म्हारो रूखवाळो आयो।

भूखी आंतड़ियां अरथायो-

म्हारो अपणापो आयो।

सदी बीसवीं वध नै बोली-

गांधी-आयो / गांधी आयो।

आज उणी री पकड़यां डांडी

बांध-बांध नै कमर काठी

झाल हाथ नै उण री लाठी

उण वामन री मानवता

भूखी नागी नाठी आवै-

अंधकार री आंख्यां में खीरा उछाळती।

सिंघासण री दाढां बिच्चै हाथ घालती।

उण गांधी नै/ उण वामन नै

आवण आळी अजरी पीढयां

आवण आळै अजरै जुग में

परमाणु रै पळकां बिच्चै

अंधकार

अर

इन्यावां बिच्चै

अरथावैला

अपणावैला

गुण गावैला।

स्रोत
  • पोथी : आजादी रा भागीरथ : गांधी ,
  • सिरजक : आईदान सिंह भाटी ,
  • संपादक : वेद व्यास , श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति ,
  • संस्करण : 1