अबिगत कोई रेख खींचग्यो कदै

खेत-खेजड़ा, टेसण, ढोर-मिनख

अेकला बळै सगळा।

साथ के चीज रो है रे?

पड़ै है अर उडै है

धोखैबाज चीज है रेत बडी

धूणी री तरियां रसल्यो

घड़ी-भर में सा छूमंतर

कोई नदी अठै खेलै कोनी

प्रेम सूं बतयावण नै

बारला बक्या करै

रंग थारा थार रा बडा जोरदार

रंगां सूं आंख्यां आली करां, लाडी

इण भट्टै में रचीज्या हा के?

बळै सगळा अेकला।

गांव-गवाड़ रै

पाणी में फ्लोराइड

कुसमै गीगला

कुसमै म्हारा दांत पीळा होग्या

कमर झुकगी

छीजग्यो हाडकां रो जोर

दो छांट नै अडीकता

आभो भी सावळ टिकै नईं

बळतां नै कोई सीतळ प्या दै

बावळा

अेकला बळै सगळा।

पण धन गडयो कोनी

देस सूं बारै

घणा देख्या रे शहर थारा

रूळल्यो सब सड़कां पर

तपत में

पाणी रा भी पईसा लेवै

धी का काड़

मिनख सो मिनख है के कोई बठै

जिन्नै देखो हल्लो, गीगला

ढोर नैं हांकै इयां आदमी हांकै

तूंद आगलै रै ढूंगां में ठोक अर

खड़या है लैणां में

अड़ मरूं अर धड़ मरूं

जीव नैं जग्यां कोनी

भाईजी-भाईजी करतां

गळै मांय जाळ पड़ग्या

अेकला बळै सगळा।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : आशीष बिहानी ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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