वौ मास्टर कित्तौ भलौ है—

'आपांरा कागद लिखै

आपांरै जैड़ौ दीखे’।

कैवतौ फिरतौ उण दिन—

रामू सूं रहीम

रहीम सूं दीनूं

अर दीनूं सूं मातादीन।

वौ मास्टर टाबरां नै सुणावतौ

कहाणियां—‘चिड़ी-काग री'।

कीकर गटकग्यौ लड़ती मिनियां री

रोटी—‘कपटी बांदरौ'।

समझावतौ वौ फरक—

धोलै-काळै रौ

बतावतौ लींच-गींच, ऊंच-नीच

बंसरी बजावतौ सरै-सांभ

आथूणै-धोरै जाय’र।

फूस-टापरां में सपना बांटतौ

फिरतौ गलियां में मास्टर।

गांव में बांवळियौ कीकर ऊगग्यौ?

गलियां में कांटा बिखरण लागा है

म्हांनै सलाम नीं करै

आंख्यां काढै है मास्टर।

कैवतौ आपरी हथाई माथै—

पटेल सूं सरपंच

ठाकर सूं बामण

अर बामण सूं लट्ठ-बाज।

अर अेक दिन गांव सूं

अलोप होयग्यौ वौ मास्टर।

धरती गिटगी के आभौ खायम्यौ!

कोई नीं जांणै।

कोई नीं बतावै कठै गयौ मास्टर?

अजै तांई उडीकै आथूणै धोरै जाय’र

रामू, दीनू, रहीम, मातादीन रा टाबर

‘अेक दिन जरूर पाछौ आवैला मास्टर!

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : आईदानसिंह भाटी ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : पहला संस्करण