प्रेम वाळी निजर में खुस हूं

मीठी नींद बिस्तर में खुस हूं

म्हैल-माळिया थनै मुबारक

म्हैं तो म्हारै घर में खुस हूं

झोळी भरदै मालिक थारी

म्हैं तो मुट्ठी भर में खुस हूं

झोळी भरदै मालिक थारी

म्हैं तो मुट्ठी भर में खुस हूं

सुरग रो म्हैं कांई करूंला

म्हैं तो मन मंदर में खुस हूं

वा तो म्हारै मन में रैवै

म्हैं उण दिलबर में खुस हूं

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : अब्दुल समद ‘राही’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
जुड़्योड़ा विसै