मिनखां रो है काळ अठै

सूनो है पंपाळ अठै

निजरां म्हारी काची कोनी,

जगां-जगां है जाळ अठै

खूंटी ताण सोया नैछै सूं,

पेंदै पड़गी माळ अठै

कांई सोजो आज भलां,

लाधा है कंकाळ अठै

थारा सुपना साचा व्हैगा,

लड़ियो है तिरकाळ अठै

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोकचेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : अब्दुल समद ‘राही’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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