कान उघाड़ा तो भी बोळो

बात-बात में बदळै चोळो

किण री चिंता किण रो बाझो

भरी जवानी माथो धोळो

ऊपर सू तो दीसै सैंठो

मांय-मांय ही हुयग्यो पोलो

सहर में भरयो धूवो-धुवाळो

दीसै गांव भी मोळो-मोळो

मन री भींतां हुयगी ओछी

न्हाठै यूं क्यूं ओळो-दोळो

रिस्ता रगत रा टूट रैया है

बिखरयो जावै घर रो टोळो

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : आनन्द 'प्रिय' ,
  • संपादक : माणक तिवारी "बंधु"
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