अरी बादळी बोल जरा,

मरुधर नै सूकौ क्यूं राख्यौ?

पदमण रा पगल्या मंड्या अठै,

पन्ना धाई रौ त्याग अठै।

ईं धरती रौ कण-कण भागी,

सूरां री खेती कटी अठै।

इसी सोवणी धरती रौ,

सिणगार अलूणौ क्यूं राख्यौ?

हाडी राणी रौ चन्द्र बदन,

माथै री बिंदी, नीर नयन।

चूड़ावत रौ व्याकुल मनड़ौ,

बा कथा अठै जाणै कण-कण।

सिर कट्यौ, गळै में जा झूल्यौ

आसूंड़ौ रोक किंया राख्यौ?

मीरां री भगती गावै है,

घर घर में तनै बुलावै है।

भूखौ प्यासौ गौ धन निरखै,

बंसी री टेर सुणावण नै।

घनश्याम पधारौ बेगा-सा,

स्वागत पथ नैणां धर राख्यो।

धरती बळै तुवै-सी ताती,

आंधी चालै बळती बळती।

तेरा दरसण सुपना होग्या,

देखै आंख्यां डरती डरती।

मौत खड़ी खप्पर कर थाम्यां,

तूं रासो के कर राख्यो?

पगली किरसाण बुलावै,

मां धरती री तिरस बुलावै।

सांसर गूंगा जोवै निरखै,

पांख पंखेरू तनै बुलावै।

अरी बादळी बोल जरा,

मरुधर नै सुकौ क्यूं राख्यौ?

मरुधर नै चूनड़ी उढ़ादै,

हरी हरी चूड्यां पहरादै।

माथै पर सिन्दूर सजादै,

हाथां में मेहंदी मंडवादै।

आजा भोळी बदळी आजा,

काम अधूरौ क्यूं राख्यौ?

स्रोत
  • पोथी : आंगणै सूं आभौ ,
  • सिरजक : आशा शर्मा ,
  • प्रकाशक : उषा पब्लिशिंग हाउस ,
  • संस्करण : 2011
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