केइ मूढ मिथ्याती जीवड़ा,आश्व नें कहे छें अजीव।

त्यां जीव अजीव ओलख्या, त्यारें मोटीं मिथ्यात री नीव॥

कई मूढ़ मिथ्यात्वी जीव आश्रव को अजीव कहते हैं। उन्हें जीव-अजीव की पहचान नहीं। उनके मिथ्यात्व की नींव गहरी है।

स्रोत
  • पोथी : आचार्य भिक्षु तत्त्व साहित्य ,
  • सिरजक : आचार्य भिक्षु ,
  • संपादक : आचार्य महाश्रमण ,
  • प्रकाशक : जैन विश्व भारती प्रकाशन
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