अपनैं हितकौ अहित जहं, सुनत सोच चित होय।

उपजत करुना रस तहां, बरनत कबिबर सोय॥

स्रोत
  • पोथी : नेहतरंग ,
  • सिरजक : बुध्दसिंह हाड़ा ,
  • संपादक : श्रीरामप्रसाद दाधीच ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : first
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