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अपनैं हितकौ अहित जहं
बुद्धसिंह हाड़ा
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अपनैं
हितकौ
अहित
जहं,
सुनत
सोच
चित
होय।
उपजत
करुना
रस
तहां,
बरनत
कबिबर
सोय॥
स्रोत
पोथी
: नेहतरंग
,
सिरजक
: बुध्दसिंह हाड़ा
,
संपादक
: श्रीरामप्रसाद दाधीच
,
प्रकाशक
: राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर
,
संस्करण
: first
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