धर काज धीरत मल धरै धीर तण

आपांणौ बळ आउठ गिर।

पाव परठबै दूद परगंजण।

सरप कसण सुरतांण सिर॥

सु विख किलंब सिर केहर दुजणसल

पाव परवठै सझै फण।

कंदळ करण घणूं कसमसियो,

फेर सकियो किही फण॥

मिणधर मेछ कमळ मह-मोहण,

चाच वसोंधर दे चलण।

मूंणस वट तो तण माडेचा,

मनखत मांणी निभै मण॥

वडगिर विखम वडो-वड रावळ,

दुरंग पांण ते दईव डरै।

पोह पतसाह पाळ-कुळ पैहड़ै।

कीधो पग तळ राज करै॥

स्रोत
  • पोथी : मुहता नैणसीं री ख्यात, भाग 2 ,
  • सिरजक : बोहड़ बीठू
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