बस राखो जीभ कहै इम बांको कड़वा बोल्यां प्रभत किसी।

लोह तणी तरवार लागै, जीभ तणी तरवार जिसी॥

भारी अगै उगैरा भारत, हेकण जीभ प्रताप हुवा।

मन मिळियोड़ा तिकां माढवां, जीभ करै खिण मांह जुवा॥

मैला मिनख बचन रै माथै, बात बणाय करै विस्तार।

बैठा सभा बिच मूंडा बारै, वचन काढणो बहुत बिचार॥

मन में फेर धणी री माळा, पकड़ै नंह जमदूत पलो।

मिळै नहीं बकणा सूं माया, भाया कम बोलणो भलो॥

कविराजा बांकीदासजी कहते है कि अपनी जिव्हा को वशीभूत रखो। कड़वे वचन बोलने में कोई शाबाशो नहीं है,क्योकिं लोहे की तलवार की चोट वैसी नहीं लगती है जैसी जिव्हा की तलवार की चोट लगती है।1

एक जीभ ही के प्रताप से कई महाभारत आदि युद्ध हो चुके हैं और यह जीभ एक क्षण-भर में जिन मनुष्यों के मन मिले हुए हैं, उनको अलग-अलग कर देती है।2

दुष्ट मनुष्य जरा सी बात का विस्तार कर डालते हैं। अतः सभा में बहुत विचार कर मुख से शब्द निकालना चाहिए।3

हे मनुष्यों! मन में ईश्वर की माला फेरो, जिससे यमराज के दूत पकड़ ही सकें और हे भाई! बकने से तो धन नहीं मिलता है, इससे तो कम बोलना ही अच्छा है।4

स्रोत
  • पोथी : बांकीदास- ग्रंथावली ,
  • सिरजक : बांकीदास ,
  • संपादक : चंद्रमौलि सिंह ,
  • प्रकाशक : इंडियन सोसायटी फॉर एजुकेशनल इनोवेशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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