काल्हि करै सो आजि, आजि सो अब ही कीजै।

छिन भंगुर यह देह, राम भजि लाहा लीजै।

काया कर्म आधीन, काल गति जाइन जानी।

अधबीधौ ही रहै, काम आरंभै प्रानी।

ऐसी विधि अब ज्ञानि जिव, सुमिरन सुकृत कीजिये।

कही बालकराम सतसंग मिलि, जन्म सफल करि लीजिये॥

स्रोत
  • पोथी : पंचामृत ,
  • सिरजक : बालकराम ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा,दादू महाविद्यालय मोती डूंगरी रोड़, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम