आव गुरु गोरक्ख, आव सिध बाळगदाई।

घोड़ाचोळी आव, आव कंथड़ बिरदाई।

सिध्ध कणेरीपाव, आव जाळंध्र मच्छंद्रिय।

औघड़ भड़ंगस आव, करण बस पाँचों इंद्रिय।

धूंधलीपाव सुखदे भरथ, गोपीचंदा तत ग्रहण।

नव नाथ आव सिध्धां सहित, ‘अलू’ प्राण रक्षा करण॥

हे गुरु गोरखनाथ! मेरी आर्त्त पुकार सुनकर आप अविलम्ब आइये। हे सिध्द-स्वरूप बालगदाई! आप आओ। हे वरदायक कंथड़ और घोड़ाचोळी! आप पधारिये। हे सिध्द कणेरीपाव, जाळंधर नाथ और हे मत्स्येन्द्रनाथ! आपका आह्वान है। इंद्रिय-विजय करने वाले हे औघड़ हांडी भडंग! आप पधारिये। हे धूंधलीपांव! भर्तृहरी और परम तत्व को जानने वाले गोपीचंद आपका आवाहन है। अलूनाथ कहता है— हे नौ नाथ! मैं आपका आह्वान करता हूँ। आप अपने सिध्दों को लेकर आइये और मेरे संकट-ग्रस्त प्राणों की रक्षा कीजिये।

स्रोत
  • पोथी : सिद्ध अलूनाथ कविया ,
  • संपादक : फतहसिंह मानव ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकेदमी ,
  • संस्करण : प्रथम
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